Physics in Ancient India
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अप् विमर्श


अप् विमर्श (द्रव अवस्था) (The Liquid State)
वैशेषिकाचार्यों ने द्रव (अप्) को रूपहीन, शीतल, स्नेहकारक (Cohesive) और द्रवत्व (Fludity) से परिपूर्ण माना है। 1
भौतिक विज्ञान के अनुसार एक ही तत्त्व तीन अवस्थाओं को प्राप्त होता है। इस हेतु द्रव में भी समवायता (Concomitance) के कारण गंध (Smell) विद्यमान रहती है।
प्राय: सभी द्रव्य रंगहीन होते हैं। वाष्पीकरण के कारण द्रव शीतल होते हैं। द्रव का गैसीय अवस्था में रूपान्तरण प्रत्येक तापमान पर होता रहता है। इस प्रक्रिया के लिये आवश्यक ऊष्मा का अवशोषण द्रव के शेषभाग से होता रहता है। इस हेतु द्रव का तापमान बाहरी वातावरण से कम होता है। अतएव द्रव में शीतस्पर्श की अनुभूति होती है।
स्नेहकारक बल (Cohesive force) के कारण द्रव का उपयोग लेई (पिण्डिकरण-Paste) बनाने में या ठोस पदार्थो के चूर्ण को गूँथने में किया जाता है। वस्तुत: होता यह है कि द्रव के अणु ठोस पदार्थो के चूर्ण के कणों को चारो तरफ से घेर लेते हैं। इस परिवर्तित परिस्थिति में स्नेहकारक बल के कारण कण, परस्पर एक दूसरे के निकट आ जाते हैं, फलत: ठोस कणों के मध्य अन्तराण्विक अन्तराल घटता है जिसके कारण लेई (Paste) इत्यादि बनते हैं।उपर्युक्त गुण इस तथ्य को प्रदर्शित करता है कि अणुओं के मध्य एक प्रकार का आकर्षण बल होता है जो द्रव की मुक्त सतह पर एक पृष्ठ तनाव (Surface tension) का निर्माण करता है।
वस्तुत: भौतिकशास्त्र के अनुसार द्रवों के लिये द्रवत्व (Fludity) गुण सनातन नहीं है। निसर्ग में जल साधारणत: द्रव रूप में उपलब्ध होता है, इसी हेतु वैशेषिक आचार्यो ने 'जल' शब्द को द्रव अवस्था के प्रतिनिधि के रूप में व्यक्त किया है।
सामान्यत: लोहा (Iron), सुवर्ण (Gold), चाँदी (Silver) इत्यादि धातुएँ सामान्य दाब-तापमान पर ठोस अवस्था में विद्यमान रहती है। परन्तु धात्विक ठोसों से ऊष्मा का संयोग धातु के आण्विक दोलन को इस सीमा तक बढ़ा देता है कि ठोस (धातु) परिवर्तन प्रक्रिया को पूर्ण कर सम्बन्धित द्रव में परिवर्तित हो जाता है।
गुरुत्व के कारण द्रवों का अधोमुख प्रवाह (downward flow) भी देखा जा सकता है, इसीलिये पात्र इत्यादि में भरे द्रव की ऊपरी स्वतन्त्र सतह क्षैतिज हो जाती है।पृष्ठतनाव, सान्द्रता (viscosity) इत्यादि द्रव के विशिष्ट गुण हैं। इन गुणों का विस्तृत अध्ययन भौतिक विज्ञान में किया जाता है। वैशेषिक दर्शन के विस्तारपूर्वक अध्ययन के लिये इस विषय से सम्बद्ध अध्ययन लाभप्रद हो सकता है।
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References
1
प्रशस्तपाद, -भाष्य, अब्निरूपण, (२०० ई. पू.),
"वैशेषिक: जलस्य विशेष गुण: अभास्वर शुक्लरूपं शीतस्पर्श:।"
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंञालय, भारत सरकार